Saturday, April 18, 2015

जैज़ पर लम्बा आलेख



चट्टानी जीवन का संगीत 
चौबीसवीं कड़ी


28.

और्नेट कोलमैन के ही एक अत्यन्त सावधान और हमदर्द श्रोता थे जॉन कोल्ट्रेन (1926 – 1967), जिन्होंने जैज़ के क्षेत्र में अगली कड़ी जोड़ी।
कोल्ट्रेन की कहानी एक ऐसे आदमी की कहानी है, जिसने बिल्कुल नीचे से शुरू किया। 
जॉन कोल्ट्रेन   ने अपनी छोटी-सी ज़िन्दगी में जैज़ के कई रंग देखे और कुछ ऐसे लोगों के साथ संगत की जो काफ़ी टेढ़े माने जाते थे. जैसे माइल्स डेविस और थेलोनिअस मंक. कोल्ट्रेन की निजी ज़िन्दगी में भी कई उतार-चढ़ाव आये, जिनका असर उनके संगीत पर भी पड़ा. जौन कोल्ट्रेन का जन्म नौर्थ कैरोलाइना में हुआ था, जहां उन्होंने ज़िन्दगी के शुरुआती साल गुज़ारे. अभी वे बारह साल के थे जब कुछ ही महीनों के अन्दर उनके दादा-दादी, बुआ और पिता का देहान्त हो गया और उन्हें उनकी मां ने पाल-पोस कर बड़ा किया. सोलह बरस की उमर में कोल्ट्रेन अपने परिवार के साथ फ़िलाडेल्फ़िया चले आये और उसी समय उनकी मां ने उन्हें तोहफ़े में एक सैक्सोफ़ोन दिया, जिस पर दो-ढाई बरस में ही कोल्ट्रेन ने इतनी महारत हासिल कर ली कि वे पेशेवर मण्डलियों में संगत करने लगे. 
दूसरे विश्व युद्ध के अन्तिम दौर में कोल्ट्रेन 1945 में नौसेना में भरती हो गये और साल भर तक एक नौसैनिक के तौर पर काम करने के बाद जब वे फ़िलाडेल्फ़िया लौटे तो एक बार फिर जैज़ संगीत का नशा उन पर सवार हो गया. हालांकि वे कई मण्डलियों में संगत करते रहे और बाहर दौरों पर भी जाते रहे, मगर उन पर असर चार्ली पार्कर का था, जिन्हें वे नौसेना में भरती होने से दो महीने पहले सुन चुके थे और उन्हीं के लफ़्ज़ों में कहें तो पार्कर की शैली ने "उनकी ठीक आंखों के बीच चोट की थी." वे कोलमैन हौकिन्स को भी सुन चुके थे और धीरे-धीरे यह समझने की कोशिश कर रहे थे कि ये सारे तपे हुए जैज़ वादक कैसी नयी चाल में जैज़ को ढालने का काम कर रहे थे. 

https://youtu.be/saN1BwlxJxA (जौन कोल्ट्रेन - ऐलाबामा)

इसी दौर में कोल्ट्रेन एक ओर तो डिज़ी गिलेस्पी और जौनी हौजेस के सम्पर्क में आये, दूसरी तरफ़ माइल्स डेविस जैसे "कठिन" जैज़ संगीतकार के सम्पर्क में, जिनके साथ कोल्ट्रेन का एक अजीबो-ग़रीब रिश्ता रहा -- एक तरफ़ आदर-सम्मान का दूसरी तरफ़ तनाव का और तीसरी तरफ़ संघर्ष का.  हो सकता है, जैज़-संगीत के प्रेमियों ने कोल्ट्रेन को 1949 के आस-पास सुना हो, जब वे डिज़ी गिलिस्पी के बैण्ड में बहुत-से लोगों के बीच एक और सेक्सोफ़ोन-वादक की हैसियत से मौजूद थे, लेकिन उनकी वास्तविक प्रतिभा का पता लोगों को सन 1955 में चला, जब उन्होंने माइल्स डेविस की मण्डली में संगत शुरू की। बड़ी बात यह थी कि कोल्ट्रेन एक जाने-माने संगीतकार से नयी हिकमतें सीखते हुए आज़ाद पेशेवर की ज़िन्दगी जी रहे थे जब माइल्स डेविस ने उन्हें ख़ास तौर पर बुला कर अपनी मण्डली "फ़र्स्ट ग्रेट क्विण्टेट" में सैक्सोफ़ोन वादक की जगह दी थी. 1955 से 1957 के बीच कोल्ट्रेन ने माइल्स डेविस की मण्डली के साथ कई महत्वपूर्ण रिकौर्ड जारी किये जिनसे उनकी बढ़ती हुई महारत का साफ़ पता चला. लेकिन समस्या यह थी कि जौन कोल्ट्रेन अब तक हेरोइन की चपेट में आ गये थे और माइल्स डेविस ने जब 1957 में अपनी मण्डली भंग की तो उसके पीछे एक वजह कोल्ट्रेन की नशे की लत भी थी. लेकिन सब कुछ के बावजूद माइल्स डेविस के मन में कोल्ट्रेन की प्रतिभा के लिए गहरा सम्मान था और आगे चल कर जब 1958 में कोल्ट्रेन माइल्स डेविस की मण्डली में वापस आये तो दोनों मिल कर संगीत के कार्यक्रमों में एक-दूसरे का साथ देते रहे, जैसे 1960 में स्टौकहोम की संगीत सभा में जो एक यादगार सभा थी. 

http://youtu.be/4_z221y8TOs (जौन कोल्ट्रेन और माइल्स डेविस - युगल वादन - स्टौकहोम 1960)


इस बीच कोल्ट्रेन 1955 में जुआनीटा नईमा ग्रब्स से शादी कर चुके थे जो धर्म-परिवर्तन करके मुस्लिम बनी थी और नईमा के साथ वे इस्लाम के सम्पर्क में भी आये. लेकिन यह विवाह आठ साल बाद टूट गया और इसके बाद कोल्ट्रेन ने ऐलिस मक्लाउड से दूसरा विवाह किया जो उनकी निजी ज़िन्दगी और संगीत -- दोनों के लिए बहुत सार्थक साबित हुआ, क्योंकि दोनों की रुचियां बहुत मिलती थीं, ख़ास तौर पर भारतीय दर्शन और धर्म में. ऐलिस चूंकि खुद भी जैज़ पियानोवादक थी और जानती थी कि पेशेवर संगीतकार को किस तरह के तनावों से जूझना पड़ता है.
बहरहाल, माइल्स डेविस की संगत में कोल्ट्रेन उस नयी धारा में शामिल हो चुके थे, जिसकी शुरुआत माइल्स डेविस, चार्ल्स मिंगस और थेलोनिअस मंक जैसे "सोचने वाले" जैज़ संगीतकारों ने की थी. स्वाभाविक रूप से कोल्ट्रेन का अगला कदम उन्हें थेलोनिअस मंक की मण्डली में ले गया जहां उन्होंने 1957 में कुछ ही महीनों के लिए पड़ाव डाला, लेकिन उस साल के आख़ीर में सुप्रसिद्ध कारनेगी हौल में जो कार्यक्रम आयोजित हुआ वह आज भी कोल्ट्रेन और मंक के चाहने वालों और आम जैज़ प्रेमियों में बहुत लोकप्रिय है. 

Thelonious Monk Quartet with John Coltrane at Carnegie Hall 

 रूढि़यों से मुक्ति का प्रयास साठ के दशक में जॉन काल्ट्रेन भी करते रहे और यह कोशिश काफ़ी हद तक सफल भी हुई। इसीलिए जब वे परम्परागत ढंग के ब्लूज़ बजाते तो भी उनका एक अलग अन्दाज़ रहता. सुरों के बीच आवा-जाही काफ़ी जटिल और ताल का परिवर्तन भी बिलकुल अपनी तरह का होता जिसे कोल्ट्रेन के परिवर्तन कहा जाने लगा था. जैसा कि उस दौर के सबसे मशहूर ऐल्बम "ब्लू नोट" में सुनायी देता है, ख़ास तौर पर दो रिकौर्डों -- "ब्लू ट्रेन" और "लेज़ी बर्ड" में.

http://youtu.be/XpZHUVjQydI   --- (जॉन काल्ट्रेन - ब्लू ट्रेन)

http://youtu.be/DAsUNTHRjaM -- ( जॉन काल्ट्रेन - लेज़ी बर्ड)

माइल्स डेविस और थेलोनिअस मंक की संगत में -- जिनमें से एक ट्रम्पेट वादक थे और दूसरे पियानो -- जौन कोल्ट्रेन ने अपनी शैली को इस हद तक सान पर चढ़ाया था कि एक समीक्षक ने कहा था कि उनका वादन "संगीत की चादरों" जैसा लगता है. ख़ूब कसा हुआ और एक ही मिनट के दौरान सैकड़ों सुरों के फ़ासले तय कर लेने वाला. 
इस बीच जॉन काल्ट्रेन के संगीत में कई उतार-चढ़ाव आये। एक दौर ऐसा भी था, जब वे ’मुक्त जैज़’ के सबसे बड़े समर्थक थे और ऐसा संगीत पेश कर रहे थे, जिसमें नाद और स्वर की कोई सुसंगत संरचना नहीं रह गयी थी -- संगीत विशुद्ध ध्वनि बन कर रह गया था। लेकिन इस अति से अलग हो कर जब उन्होंने ’काले मोती’ जैसी धुनें रिकॉर्ड कीं तो रूढि़यों को तोड़ते हुए भी जैज़ की बुनियादी परम्परा का-उसके सुर, ताल और लय का-पूरा ख़याल रखा। ’काले मोती’ नामक मशहूर रिकॉर्ड के आरम्भ में हानल्ड बर्ड के ट्रम्पेट-वादन के बाद जब जॉन कोल्ट्रेन सेक्सोफ़ोन पर धुन को बढ़ाते हैं तो उनकी रचनात्मकता का एहसास सहज ही हो जाता है।
http://youtu.be/grdV-iNIsQs -- (जॉन काल्ट्रेन - काले मोती)

"काले मोती" के आस-पास कोल्ट्रेन ने अपना एक बेहद कामयाब ऐल्बम जारी किया -- "जायण्ट स्टेप्स" -- "विराट कदम." इसमें ज़्यादातर उनकी अपनी रचनाएं थीं और ऐल्बम का मुख्य रिकौर्ड आम तौर पर उनकी प्रयोगशीलता की मिसाल माना जाता है, जिसमें सुर-ताल का मेल बेहद पेचीदा भी है और कोल्ट्रेन की अनोखी शैली में इस्तेमाल किया गया है, जहां सुरों के बढ़ते हुए क्रम के साथ धुन और राग का सामंजस्य मुग्ध कर देता है.  

http://youtu.be/30FTr6G53VU  --- (जॉन काल्ट्रेन - जायण्ट स्टेप्स)

जैसा कि हमने कहा, कोल्ट्रेन के संगीत का सफ़र सीधा नहीं था. 1960 के दशक के शुरू में वे एक बार फिर इस हद तक चले गये कि समीक्षक और जैज़ प्रेमी उनके संगीत को "ऐण्टी जैज़" कहने लगे. खुद कोल्ट्रेन ने माना कि वे कुछ ज़्यादा ही तकनीकी बारीकियों में उलझ गये थे. मगर हर बार की तरह वे फिर अपनी पुरानी शैली की तरफ़ लौट आये, अल्बत्ता उसमें कुछ नया जोड़ते हुए. अब तक कोल्ट्रेन कुछ नये लोगों की संगत करने लगे थे और उनकी मण्डली "द क्लासिक क्वौर्टेट" ने अपना सबसे मशहूर रिकौर्ड "ए लव सुप्रीम" दिसम्बर 1964 में जारी किया. कहा जाता है कि कोल्ट्रेन को, जो लगातार हेरोइन और एल एस डी जैसे नशों से कूझते रहे थे -- उन्हें अलविदा कहते और फिर उन्हें गले लगाते हुए -- "ए लव सुप्रीम" की प्रेरणा 1957 में नशे की एक लगभग जानलेवा मात्रा लेने के बाद मिली थी. बहरहाल, यह रिकौर्ड न सिर्फ़ कोल्ट्रेन की अब तक की उपलब्धियों की बानगी था, बल्कि बहुत हद तक उनके आध्यात्मिक मिज़ाज की झलकी भी पेश करता था. "ए लव सुप्रीम" का चौथा सुर परिवर्तन कोल्ट्रेन की एक कविता के लिए संगीत का आधार बिछाने के लिए रचा गया था. ऐल्बम के आवरण पर दी गयी इस कविता में आये शब्दों के हर बलाघात के लिए कोल्ट्रेन ने एक सुर बजाया था और हर शब्द पर संगीत का एक टुकड़ा. ज़ाहिर है ऐल्बम काफ़ी चुनौती भरा था, लेकिन मज़े की बात है कि वह सुनने वालों में बहुत लोकप्रिय भी हुआ. जौन कोल्ट्रेन ने "ए लव सुप्रीम" को किसी सभा में एक ही बार बजाया -- 1965 में -- और उसका भी एक छोटा-सा टुकड़ा ही उपलब्ध है, हालांकि ऐल्बम में पूरा रिकौर्ड मिलता है.

http://youtu.be/_qt435yF2Qg  -- (जौन कोल्ट्रेन - ए लव सुप्रीम)

http://youtu.be/clC6cgoh1sU  -- (ए लव सुप्रीम - पूरा)

१९६४-६५ में "ए लव सुप्रीम" तक आते आते जौन कोल्ट्रेन का एक बहुत लम्बा दौर पूरा हो चुका था और उनके संगीत में "ए लव सुप्रीम" से आध्यात्मिकता का जो पुट दाख़िल हुआ था वह आगे के ऐल्बमों -- "ओम" और "मेडिटेशन्स" -- में परवान चढ़ने लगा था. तभी जब किसी को अन्दाज़ा नहीं था कि कोल्ट्रेन की नशे की लत उनके शरीर को कितना खोखला कर चुकी थी, १९६७ में महज़ ४० साल की उमर में जिगर के कैन्सर से कोल्ट्रेन की मौत हो गयी. आज पीछे मुड़ कर देखते हुए यह साफ़-साफ़ देखा जा सकता है कि जौन कोल्ट्रेन ने जैज़ ही नहीं दूसरी तरह के संगीत पर भी कितना असर छोड़ा था. वे ऐसे संगीतकार थे जो परम्परा का साथ निभाते हुए प्रयोगों को उनके चरम तक ले जाने की कूवत रखते थे.
जौन कोल्ट्रेन की मौत के बाद फ़िलाडेल्फ़िया का उनका पुराना घर राष्ट्रीय ऐतिहासिक भवन घोषित कर दिया गया है और यही दर्जा उनके ्न्यू यौर्ख वाले घर को भी दिया गया है जहां वे 1964 से ले कर मृत्यु तक रहे. लेकिन उनकी सबसे बड़ी विरासत वह संगीत है जो वे अपने पीछे छोड़ गये हैं. जारी किये गये ऐल्बमों और रिकौर्डों के अलावा बहुत कुछ ऐसा भी है जो अभी सामने नहीं आया है. उनके बेटे रवि कोल्ट्रेन के पास --जिसका नाम सितारवादक पण्डित रविशंकर के नाम पर रखा गया था  और जो खुद भी एक सैक्सोफ़ोनवादक है -- काफ़ी सामग्री रखी हुई है, जिसमें से कुछ तो यकीनन नायाब है.
अन्त में बस इतना कहना बाकी रह जाता है कि किसी फ़नकार की पहचान जिस हद तक उसके प्रयोगों से होती है उतनी ही इस बात से कि वह परम्परा के साथ ताल-मेल बैठाने की कितनी कूवत रखता है. जौन कोल्ट्रेन का ज़िक्र हम उनके सैक्सोफ़ोन पर ड्यूक एलिंग्टन के पियानो की संगत में बजायी गयी ड्यूक एलिंग्टन ही की प्रसिद्ध रचना "इन ए सेण्टिमेण्टल मूड" के साथ ख़त्म कर रहे हैं :

 http://youtu.be/r594pxUjcz4   -- इन ए सेण्टिमेण्टल मूड

(जारी)


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