Friday, December 24, 2010

देशान्तर



आज के कवि : एज़रा पाउण्ड

एज़रा पाउण्ड ( 1885-1972) अंग्रेज़ी के उन कवियों मे शुमार किये जा सकते हैं जो 19वीं और 20वीं सदियों की दहलीज़ को लांघ कर एक नये मुहावरे के साथ सामने आये और जिन्होंने आधुनिक सम्वेदना को समृद्ध किया. पाउण्ड की एक खूबी यह भी है कि उन्होंने अंग्रेज़ी के काव्य-प्रेमियों को चीनी कविता से भी परिचित कराया. यहां पाउण्ड द्वारा की गयी कुछ चीनी कविताओं की पुनर्रचनाएं प्रस्तुत हैं. इन चीनी कविताओं की विशेषता है संकेतों में बात कहना और एक हलके-से अवसाद का माहौल रच देना.


चीनी कविताएँ

तो-एम-माई का टिका हुआ बादल

"बसन्त में झड़ी," तो-एम-माई कहता है,
"बगिया में वसन्त की झड़ी।"

1. बादल घिर आये हैं, घिर आये हैं और बूँदें गिरती है, गिरती है
आकाश की आठों तहें सिमट कर एक अन्धकार में बदल गयी हैं,
और दूर तक फैली दिखायी देती है चौड़ी, सपाट सड़क।
मैं थिर हो कर रुकता हूँ अपने पूरब की ओर कमरे में, ख़ामोश, ख़ामोश,
थपथपाता हूँ मदिरा की नयी सुराही।
मेरे दोस्त अब दोस्त नहीं रहे या चले गये हैं दूर,
सिर झुकाता हूँ मैं और खड़ा रहता हूँ निश्चल।
2. वर्षा, वर्षा, और बादल घिर आये हैं
आकाश की आठों तहें अँधेरे में बदल गयी हैं,
सपाट धरती बन गयी है दरिया
मदिरा, मदिरा, यह रही मदिरा,
मैं पीता हूँ पूरब की खिड़की के पास।
सोचता हूँ बातचीत और इन्सान के बारे में,
और कोई नाव, कोई गाड़ी आती नहीं दिखती।
3. पूरब की ओर मेरी बगिया के पेड़
नयी कोंपलों में फूट पड़े हैं,
वे नयी चाहत जगाने की कोशिश करती हैं,
और लोग कहते हैं कि चाँद और सूरज बराबर चलते रहते हैं
क्य¨ंकि उन्हें कोई नरम आसरा नहीं मिलता।
चिड़ियाँ फड़फड़ाती हुई मेरे पेड़ पर आराम करने उतारती हैं
और मेरा खयाल है मैंने उन्हें यह कहते सुना है:
ऐसा नहीं है कि दूसरे लोग न हों
लेकिन हमें यही आदमी पसन्द है,
मगर चाहे जितना भी हम बात करना चाहें
इसे हमारे दुख का पता नहीं चल सकता।
(ताओ युआन मिंग 365-427 ई)

शू के तीरन्दाज़ों का गीत

यहाँ हैं हम, साग की पहली-पहली कोंपलें तोड़ते
और कहते: कब लौटेंगे हम अपने देश ?
हम यहाँ हैं क्योंकि केन-निन क़बाइली हमारे दुश्मन हैं
इन मंगोलों की वज़ह से हमें जरा भी आराम नहीं।

साग की नरम कोपलों पर ज़िन्दा हैं हम,
जब कोई कहता हैं वापसी, दूसरों में उमड़ता है दुख।
दुखी हैं मन, दुख प्रचण्ड है, हम भूखे और प्यासे हैं।
हमारी सुरक्षा की पाँत अभी सुनिश्चित नहीं की गयी,
कोई अपने मित्र को लौटने नहीं दे सकता।
साग के पुराने डण्ठलों पर ज़िन्दा हैं हम।
हम कहते हैं : क्या हमें अक्तूबर में लौटने दिया जायेगा ?
राज-काज में कोई आराम नहीं,
हमें ज़रा भी चैन नहीं।
कटु है हमारा दुख, पर हम लौट नहीं सकते अपने देस।
कौन-सा फूल खिला होगा ?

किसका रथ ? सेनापति का है।
घोड़े, उसके घोड़े भी, थक गये हैं। कभी वे तगड़े थे।
हमें कोई आराम नहीं, महीने-भर में तीन-तीन लड़ाइयाँ
क़सम से, उसके घोड़े थक गये हैं।
सेनापति उन पर सवार हैं, सैनिक उनके साथ-साथ पैदल।
घोड़े अच्छी तरह सिखाये हुए हैं, सेनापति के पास
हाथी-दाँत के तीर हैं और मछली के चमड़े से मढ़े हुए तरकश
दुश्मन तेज़ है, हमें सावधान रहना है।
जब हम निकले थे, सरो के गाछ वसन्त से झुक आये थे,
हम लौटते हैं बर्फ़ को रौंदते हुए,
धीमी है हमारी गति, हम भूखे और प्यासे हैं,
दुख से बोझल हैं हमारे मन, हमारे दुख के बारे में कौन जानेगा,
(बुन्नो कथित रूप से 1100 ई.पू.)

विदा की चार कविताएँ

हलकी धूल पर हो रही है हलकी बारिश
सराय के आंगन में सरो के पेड़
लगातार, हरे, और हरे होते जायेंगे
लेकिन आप, श्रीमान, विदा होने से पहले
मदिरा ले लें
क्योंकि आपके गिर्द कोई मित्र नहीं रह जायेगा
जब पहुँचेंगे आप गो के द्वारों के पास
(रिहाकू या ओगाकित्सू)

कियांग नदी पर बिछोह

को-काकू-रो से जा रहा है पच्छिम को-जिन,
नदी पर धूम्र-पुष्प धुँधले हो गये हैं।
उसके एकाकी पाल के पीछे छिप गया है दूर का आकाश।
और अब मुझे दिखती है केवल नदी,
यह लम्बी कियांग नदी, स्वर्ग तक पहुँचती हुई।
(रिहाकू)


मित्र से विदा लेते हुए

नगर प्राचीरों के उत्तर में नीले पहाड़
सफ़ेद नदी उनमें मँडराती हुई;
यहाँ हमें बिदा लेनी है
और मुरझाई घास से हो कर
हज़ार मील जाना है।

तैरते हुए चौड़े बादल की तरह मन,
सूर्यास्त जैसे पुराने मित्रों का बिछुड़ना
जो दूर से अपने हाथ जोड़े नमन करते हैं।
हमारी विदाई के समय
हमारे घोड़े एक-दूसरे से हिनहिनाते हैं।
(ली पो)

शोकू के पास विदाई

"शोकू के राजा सांसो ने सड़कें बनवायीं."

कहते हैं सांसो की बनवायी सड़कें चढ़ाईदार हैं
खड़ी जैसे पहाड़।
दीवारें उठती हैं आदमी के चेहरे की तरफ़
बादल उगते हैं पहाड़ से
उसके घोड़े की लगाम तक
शिन के पक्के रास्ते पर महकदार पेड़ हैं,
उनके तने सड़क के पत्थरों को फोड़ कर निकले हैं,
और पहाड़ी नाले अपनी बर्फ़ से फूट रहे हैं
शोकू के बीचों-बीच, जो एक गर्वीला नगर है
इन्सानों का नसीबा पहले से तय हो चुका है,
ज्योतिषियों, से पूछने की कोई ज़रूरत नहीं।
(ली पो)

No comments:

Post a Comment