Tuesday, October 26, 2010

झूठ के पुलिन्दों पर बैठा स्त्री-विमर्श

कल से आगे आज जारी अगला हिस्सा

इससे पहले कि मैं मृणाल के लेख "बरसाती नदियां बहुत धोखेबाज़ होती हैं, नीलाभ जी" की कुछ बातों पर टिप्पणी करूं, मैं "जनज्वार" ब्लौग से अंजनी के लेख की कुछ पंक्तियां उद्धृत कर रहा हूं जिनका उत्तर देने में अक्षम होने और अपनी चोरी पकड़े जाने पर मृणाल ने मुझे अपने तीरों का निशाना बनाने की कोशिश की है :--

"उमा मांडी यानी सोमा मांडी के आत्मसमर्पण एवं सीपीआई (माओवादी) के नेताओं पर बलात्कार के आरोप की कहानी 24अगस्त को टाइम्स ऑफ इंडिया ने सनसनीखेज तरीके से पेश की। एक स्त्री की गरिमा और आम परम्परा तथा विशाखा निर्देशों (महिला हितों की रक्षा के लिए बना कानून) की धज्जी उड़ाते हुए इस अखबार ने उमा मांडी के फोटो और मूल नाम को भी छापा। इस घटना के लगभग दो हफ्ते बाद जनसत्ता में उसी कहानी को सच मानते हुए न केवल माओवादियों पर बल्कि लाल क्रांति पर कीचड़ उछालने वाला मृणाल वल्लरी का लेख छपा।

बीच के दो हफ़्तों में इस संदर्भ में तथ्य संबधी लेख,खबर और प्रेस रिपोर्ट भी छपकर सामने आये,लेकिन न तो लेखिका (मृणाल वल्लरी) को पत्रकारिता के न्यूनतम उसूलों की चिंता थी और न ही 'जनसत्ता' को सच को प्रतिष्ठा प्रदान करने की। लगता है कि उनकी चिंता 'कालिमा' को सनसनीखेज तरीके से पेश करने की थी और इसके लिए माओवादी आसान पात्र थे। ठीक वैसे ही जैसे किसी भी जनपक्षधर नेतृत्व को माओवादी घोषित कर पूरे जनांदोलन को सनसनीखेज बनाकर कुचल देने के लिए पूर्व कहानी गढ़ लेना। आइए, दो हफ्ते में गुजरे कुछ तथ्यों पर नजर डालें।
द टेलीग्राफ में 29अगस्त को प्रणब मंडल के हवाले से सोमा यानी उमा मांडी के कथित आत्मसमर्पण की कहानी पर खबर छपी। इस रिपोर्ट के अनुसार उमा मांडी 20अप्रैल को कमल महतो के साथ मिदनापुर से 15किमी दूर राष्ट्रीय राजमार्ग-6पर पोरादीही में गिरफ्तार हुई थीं। कमल महतो को पुलिस ने 17अगस्त को कोर्ट में पेश कियालेकिन सोमा की गिरफ्तारी नहीं दिखाई गयी। इस रिपोर्टर के अनुसार इस बात की पुष्टि न केवल उनके रिश्तेदार, बल्कि पुलिस के एक हिस्से ने भी की।
इसी तारिख को 'यौन उत्पीड़न और राजकीय हिंसा के खिलाफ महिला मंच' ने एक प्रेस रिपोर्ट जारी कर टाइम्स ऑफ़ इंडिया के खबर की तीखी आलोचना करते हुए कुछ सवाल उठाये। एक सवाल का तर्जुमा देखिये :-आत्मसमर्पण के समय उमा द्वारा दिये गये बयान को ही आधार बनाकर खबर दे दी गयी। इसे अन्य स्रोतों से परखा नहीं गया। इस खबर को बाद में भी अन्य स्रोतों के बरक्स नहीं रखा गया। ज्ञात हो कि उपरोक्त मंच में एपवा से लेकर स्त्री अधिकार संगठन और एनबीए जैसे 60संगठन और सौ से ऊपर व्यक्तिगत सदस्य हैं। 11सितम्बर के तहलका (अंग्रेजी) में बोधिसत्व मेइती की खबर के अनुसार ज्ञानेश्वरी रेल त्रासदी के आरोप में 26मई को हीरालाल महतो को गिरफ्तार किया गया। गिरफ्तारी के समय पुलिस ने हीरालाल को एक दूसरी पुलिस जीप में हथकड़ी के साथ बांधी गयी उमा मांडी के सामने पेश करते हुए कहा- यह तुम्हें जानती है कि तुम माओवादी सहयोगी हो। उमा मांडी को पुलिस की जीप में और साथ में पुलिस को वर्दी में देखने वाले ग्रामीणों के बयान को भी इस रिपोर्ट में पढ़ा जा सकता है।
मानिक मंडल ने 31अगस्त को प्रेस क्लब, दिल्ली में बताया कि उमा मांडी की कहानी पुलिस द्वारा गढ़ी गयी है। उन्होंने अपने जेल अनुभव सुनाते हुए जेल में बंद पीसीपीए के कार्यकर्ताओं के उन पत्रों का हवाला दिया जिसमें उमा मांडी के पुलिस इन्फोर्मर होने की बात कही गयी है। इस पत्र के कुछ अंश तहलका ने जारी किये हैं।
उपरोक्त तथ्यों के अलावा यदि हम प.मिदनापुर के एसपी मनोज वर्मा के उमा मांडी के आत्मसमर्पण के समय के और बाद के बयानों को देखें तब भी इस मुद्दे के ढीले पेंच नजर आयेंगे। एक संवेदनशील एवं गंभीर मुद्दे पर इन तथ्यों को नजरअंदाज कर लेख लिख मारने और छाप देने के पीछे न तो जल्दीबाजी का मामला दिख रहा है और न ही लापरवाही का। क्योंकि यहाँ हम इस तथ्य से भी वाकिफ हैं कि मृणाल वल्लरी लंबे समय से पत्रकारिता कर रही हैं, 'जनसत्ता' से जुड़ी हुई हैं और उन्हें युवा संभावनाशील पत्रकारों में शुमार किया जाता है।

अब सवाल यह है कि अपने अख़बार और मोहल्ला ब्लौग में सारी कूद-फांद मचाने के बाद महान स्त्रीवादी आन्दोलनकर्त्री और जुझारू पत्रकार मृणाल वल्लरी इन आरोपों का जवाब देने से क्यों कतरा गयीं ? ऐसा नहीं है कि उमा उर्फ़ सोमा मांडी की असलियत उनसे छिपी थी. दरअसल, खेल इससे कहीं अधिक गहरा और घातक है.

इस लेख की अगली कड़ी "चिदम्बरम के गोएबल्ज़" -- कल के अंक में देखें

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